यह श्लोक श्रीमद्भगवद गीता के 16.1 का अंश है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण दिव्य गुणों का वर्णन करते हुए कहते हैं:
"अभयं (fearlessness), सत्त्वसंशुद्धि (purity of mind), ज्ञानयोगव्यवस्थिति (steady in the path of knowledge and yoga), दान (charity), दम (self-control), यज्ञ (sacrifice), स्वाध्याय (self-study), तप (austerity), और आर्जव (honesty) ये सभी दिव्य गुण हैं।"
भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में यह बता रहे हैं कि जो व्यक्ति इन दिव्य गुणों को अपनाता है, वह अपने जीवन में सत्य, शांति, और उच्चतर आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। ये गुण आत्म-संयम, सद्गुण, और समाज के प्रति कर्तव्यों को समझने में मदद करते हैं।
अभयं: भय के बिना, आत्मविश्वास से जीवन जीना। सत्त्वसंशुद्धि: मानसिक शुद्धता और पवित्रता। ज्ञानयोगव्यवस्थिति: ज्ञान और योग में स्थित रहने की क्षमता। दान: परोपकार और धर्म के लिए दान देना। दम: स्व पर नियंत्रण रखना। यज्ञ: श्रद्धा से किए गए धार्मिक अनुष्ठान। स्वाध्याय: स्वयं का अध्ययन और आत्मज्ञान प्राप्त करना। तप: शारीरिक और मानसिक साधना। आर्जव: सरलता और ईमानदारी। यह श्लोक हमसे यह आग्रह करता है कि हम इन दिव्य गुणों को अपने जीवन में अपनाएं, ताकि हम एक सच्चे, शांत, और आध्यात्मिक रूप से उन्नत जीवन जी सकें।
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