यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.2 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:
"हे अर्जुन! तीन प्रकार की श्रद्धा होती है, जो प्रत्येक जीव के स्वभाव के अनुसार होती है: सात्त्विकी, राजसी और तामसी। अब तुम इस श्रद्धा के प्रकारों को सुनो।"
भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि श्रद्धा का प्रकार व्यक्ति के स्वभाव और गुणों पर निर्भर करता है। श्रद्धा का प्रभाव उस व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक विकास पर पड़ता है, जो उसके गुणों और प्रवृत्तियों के अनुरूप होती है। भगवान श्री कृष्ण आगे इन तीन प्रकार की श्रद्धाओं के बारे में विस्तृत रूप से बताने वाले हैं।
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